दिल्ली के रहने वाले राजीव कपूर के पिता ने स्टीलबर्ड (Steelbird Helmets) की शुरुआत साल 1964 में की थी. राजीव के पिता ने साल 1964 में स्टीलबर्ड नाम की कंपनी की शुरुआत की थी. साल 1976 में स्टीलबर्ड ने हेलमेट बनाना शुरू किया था. साल 1980 में स्टीलबर्ड ने रबर कंपोनेंट बनाना शुरू किया था. साल 1990 में स्टीलबर्ड ने टेक्निकल प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया.
इसके लिए स्टीलबर्ड ने विदेश की एक कंपनी के साथ तकनीकी सहयोग किया है. इसके बाद Steelbird ने कई इंजीनियरिंग प्रोडक्ट्स का निर्यात शुरू किया गया. आज स्टीलबर्ड दुनिया की सभी हेलमेट कंपनियों को इंजीनियरिंग प्रोडक्ट्स का निर्यात करती है.स्टीलबर्ड के पास अपनी मजबूत रिसर्च एंड डेवलपमेंट टीम है जिसके बूते स्टीलबर्ड दुनिया भर की दिग्गज हेलमेट कंपनियों को कंपोनेंट एक्सपोर्ट करती है.
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साल 2000 में परिवार के बीच बंटवारे की वजह से स्टीलबर्ड का बंटवारा हुआ. इसके बाद इटली की एक कंपनी से करार कर साल में 7 लाख हेलमेट बचने के लिए मायापुरी में स्टीलबर्ड ने एक बड़ा प्लांट लगाया. उस समय 25 करोड रुपए की लागत से तैयार की गई यह फैक्ट्री आज स्टीलबर्ड को हेलमेट के मामले में देश की दिग्गज कंपनी बन चुकी है.
हेलमेट से काम से तौबा
इसके बाद हेलमेट निर्यात होने के पहले ही लॉट में कंपनी में आग लग गई और सब कुछ चौपट हो गया. इसके बाद स्टीलबर्ड के राजीव कपूर ने फिर से बैंक से लोन लिया और दोबारा कामकाज शुरू किया, लेकिन साल 2005 में वह कंपनी बैंकरप्ट हो गई. एक बार फिर राजीव जमीन पर आ गए. इसके बाद राजीव ने यह सोचा कि हेलमेट का काम उन्हें रास नहीं आ रहा है, इसलिए हेलमेट का काम बंद कर दिया जाए.
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट का बिजनेस
इसके बाद राजीव ने इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट का बिजनेस करना शुरू कर दिया. साल 2012 में स्टीलबर्ड हेलमेट के रूप में राजीव ने फिर से हेलमेट इंडस्ट्री ज्वाइन कर ली. इस समय स्टीलबर्ड रोजाना 30000 हेलमेट बना रही है. स्टीलबर्ड का टारगेट साल में 10 मिलियन हेलमेट बनाना है. स्टीलबर्ड का कारोबार चालू वित्त वर्ष में 650 करोड रुपए को पार कर जाने की उम्मीद है. स्टीलबर्ड हेलमेट (Steelbird Helmets) के कुल कारोबार में निर्यात बाजार की हिस्सेदारी 5 फ़ीसदी से भी कम है.
हेलमेट बनाने की क्षमता 150 गुना बढ़ी
साल 2012 में स्टीलबर्ड हर महीने 6000 हेलमेट बना रही थी. उसके बाद स्टीलबर्ड ने अपने कामकाज में आमूल चूल बदलाव किया और आक्रामक मार्केटिंग अभियान शुरू किया. राजीव ने बताया कि उन्होंने हेलमेट में काफी इनोवेशन किया और कई तरह के अनोखे हेलमेट पहली बार बाजार में पेश किए. सबसे पहले स्टीलबर्ड ने ही वेंटिलेशन हेलमेट पेश किया था. इसके बाद एंटी फोग हेलमेट, नाइट विजन, वाइजर वाला हेलमेट आदि पेश किया गया.
125 तरह के हेलमेट बेच रही स्टीलबर्ड
इसके बाद स्टीलबर्ड ने हैंड्स फ्री हेलमेट पेश किया. आज स्टीलबर्ड के पास 125 तरह के हेलमेट हैं. स्टीलबर्ड की योजना अगले साल 10 नए हेलमेट पेश करने की है. राजीव ने बताया कि एक नए हेलमेट को डिजाइन करने और डेवलप करने में डेढ़ से 2 साल का समय लगता है. इसके साथ ही एक नए हेलमेट को डेवलप करने में करीब दो करोड रुपए का खर्च आता है.
डेडिकेटेड रिसर्च सेंटर
स्टीलबर्ड के पास यूरोप और नोएडा में दो डेडिकेटेड रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर हैं. राजीव ने बताया कि विदेश में मौजूद उनके रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर में दुनिया के कई मशहूर हेलमेट डिजाइनर कामकाज करते हैं. राजीव ने बताया कि दुनिया में हेलमेट के जितने भी टॉप ब्रांड हैं, स्टीलबर्ड उन सभी को कंपोनेंट की सप्लाई कर रही है.
विशाल नेटवर्क से हो रहा है काम
स्टीलबर्ड ने देश भर में 2200 डायरेक्ट डीलर बनाए हैं, इसके साथ ही स्टीलबर्ड ने देश भर में 200 से अधिक एक्सक्लूसिव शॉप शुरू की है. साल 2025 तक स्टीलबर्ड ने देश भर में 1000 शॉप शुरू करने की योजना है. देशभर के 1 लाख से अधिक दुकानों पर स्टीलबर्ड के हेलमेट बेचे जाते हैं. स्टीलबर्ड ने अपनी एक ऑनलाइन कंपनी बनाई है जो अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसे ई कॉमर्स चैनल पर हेलमेट बेचती है और उसका कारोबार सालाना 100 करोड रुपए को पार कर गया है.
स्टीलबर्ड (Steelbird Helmets) का कंपनियों से करार
इसके साथ ही स्टीलबर्ड ने हीरो, होंडा, यामाहा, बुलेट या ओला जैसी कंपनियों के साथ ओईएम के रूप में कामकाज शुरू किया है. यह सारी कंपनियां स्टीलबर्ड से प्रोडक्ट लेकर उस पर अपना लोगो लगाकर बेचती है. स्टीलबर्ड आर्मी और सीआरपीएफ जैसे अर्ध सैनिक बलों के लिए कैंटीन को भी हेलमेट की सप्लाई करती है. इसके साथ ही कॉर्पोरेट पर्पस के लिए भी स्टीलबर्ड की तरफ से हेलमेट की आपूर्ति की जाती है.