बिहार की 4 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव Bihar Election Results) हुए, और यह चारों ही सीटें एनडीए के खाते में चली गई. यह महागठबंधन के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि इन 4 में से 3 सीटों पर कभी महागठबंधन का कब्जा था. जनसुराज भले ही चुनाव जीत नहीं सकी, लेकिन उसने जो वोट काटे उससे महागठबंधन को नुकसान और बीजेपी को फायदा हुआ है.
एनडीए के अंदर बीजेपी और जेडीयू के बीच समन्वय बनाने की जो कवायद चल रही थी, उसका पॉजिटिव असर दिखा है. वोटिंग के पहले नीतीश कुमार ने अपने आवास पर एनडीए की बैठक बुलाकर जेडीयू-बीजेपी के बीच बेहतर समन्वय का टास्क दिया था.
आइए एक नजर डालते है बिहार में हुवे उपचुनाव के चार सीटों पर
1. बेलागंज सीट
बेलागंज में जनसुराज ने मुसलमान उम्मीदवार उतारकर आरजेडी का वोट काटा. मनोरमा देवी और विश्वनाथ सिंह के बीच जीत-हार का अंतर 21391 वोटों का रहा. जनसुराज के मो. अमजद को 17268 वोट मिले. यहां AIMIM ने भी मुसलमान वोट में सेंधमारी की है. AIMIM को 3533 वोट मिले हैं.
एनडीए (NDA) गठबंधन में जेडीयू ने सिर्फ बेलागंज में बाहुबली बिंदी यादव की पत्नी और दो बार एमएलसी रहीं मनोरमा देवी को उम्मीदवार बनाया था. उन्होंने आरजेडी के गढ़ को ढहा दिया. आरजेडी के विश्वनाथ दूसरे और जनसुराज के मो. अमजद तीसरे नंबर पर रहे. यहां से आरजेडी की हार के बाद गया के गढ़ में जेडीयू की एंट्री हो गई है.
बेलागंज में यादव-मुस्लिम ज्यादा
यहाँ सबसे बड़ी आबादी यादवों और मुसलमानों की है. इसलिए यह लालू प्रसाद के MY समीकरण वाला गढ़ है. यही वजह है कि यहां से सुरेन्द्र यादव जीतते रहे. यहां यादव 19 फीसदी के लगभग हैं तो मुसलमान 17 फीसदी के आसपास. उसके बाद बड़ा वोट बैंक मुसहर समाज का है. मुसहर यहां 11 फीसदी हैं. सवर्णों में सर्वाधिक सात फीसदी भूमिहार हैं. कोयरी छह फीसदी, बनिया दो फीसदी और बाकी ओबीसी छह फीसदी, ईबीसी 6 फीसदी है. पासवानों का वोट बैंक ईबीसी के बराबर ही छह फीसदी है. चमार जाति के लोग पांच फीसदी हैं.
बेलागंज से 2020 में मिली थी नीतीश कुमार को चुनौती
बात करें विधानसभा चुनाव 2020 (Bihar Election Results) की तो बेलागंज में जेडीयू से अभय कुशवाहा दूसरे नंबर पर रहे थे. लेकिन लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने अभय कुशवाहा को अपनी तरफ मिला लिया और औरंगाबाद से लोकसभा चुनाव का टिकट दे दिया. और अभय कुशवाहा आरजेडी के सांसद चुन लिए गए. यह नीतीश कुमार को एक चुनौती थी.
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आपको बता दें कि बेलागंज विधानसभा (Bihar Election Results) से 1990 के बाद से आरजेडी के सुरेन्द्र यादव चुनाव जीत रहे थे, इस बार जहानाबाद से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने बेटे डॉ. विश्वनाथ को आरजेडी से टिकट दिलवाया. लालू प्रसाद सिर्फ इसी सीट पर चुनाव प्रचार में गए थे. यही नहीं मुसलमान वोट बैंक को एकजुट करने के लिए शहाबुद्दीन के पुत्र ओसामा को भी बेलागंज भेजा गया था. लेकिन ओसामा का कोई असर नहीं हुआ. जनसुराज के मो. अमजद ने मुसलमानों के 17268 वोट काटे.
2. बात इमामगंज सीट की
बिहार विधानसभा उपचुनाव (Bihar Election Results) की सीट इमामगंज में जनसुराज ने पासवान उम्मीदवार इसलिए दिया कि हम पार्टी और आरजेडी ने मांझी जाति का उम्मीदवार दिया था. ‘हम’ की दीपा मांझी और आरजेडी के रौशन कुमार के बीच 5945 वोटों का अंतर रहा. दूसरी तरफ जनसुराज के जितेन्द्र पासवान को 37103 वोट मिले. AIMIM को 7493 वोट मिले. इससे पता चलता है कि AIMIM और जनसुराज ने आरजेडी के वोट बैंक में सेंधमारी की है. खासतौर मुस्लिमों के वोट लिए हैं.
इमामगंज का सामाजिक समीकरण
यहां मुसहर सबसे अधिक 18.6 परसेंट, मुसलमान 15.3 फीसदी, यादव 13.2 फीसदी, कुशवाहा वोट बैंक 10.82 फीसदी हैं. अनुसूचित जाति का कुल वोट बैंक 32 फीसदी के आसपास है. ओबीसी 30 फीसदी के लगभग है. राजपूत 4.3 फीसदी, ब्राह्मण व भूमिहार की आबादी कम है. सवर्ण 6 फीसदी के लगभग हैं.
3. बात रामगढ़ सीट की
- रामगढ़ उपचुनाव में जीत का मार्जिन काफी कम रहा. महज 1362 वोट से बीजेपी के अशोक कुमार सिंह जीते. लेकिन रामगढ़ जिस आरजेडी की सीटिंग सीट थी वह तीसरे नंबर पर चली गई और जनसुराज को 6506 वोट मिले. कुशवाहा वोट बैंक को लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने अपनी तरफ करने की पूरी कोशिश की. महागठबंधन ने 7 कुशवाहा को टिकट दिया था. जनसुराज ने सुशील कुशवाहा को उम्मीदवार बनाकर खेल बिगाड़ा. यहां यादवों ने लालू यादव की पार्टी के बजाय बसपा के सतीश यादव को वोट किया.
- यह आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और सांसद सुधाकर सिंह के लिए प्रतिष्ठा की सीट थी. आरजेडी ने सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत सिंह, बीजेपी ने अशोक कुमार सिंह, बीएसपी ने सतीश यादव उर्फ पिंटू यादव और जनसुराज ने सुशील कुमार कुशवाहा को उतारा था. बीजेपी के अशोक कुमार सिंह की जीत हुई. खास बात ये रही कि इस सीट पर आरजेडी नहीं बल्कि बीजेपी और बीएसपी के बीच कांटे की टक्कर हुई.
- यूपी बॉर्डर से सटे होने के चलते इमामगंज में बसपा का ठीक-ठाक प्रभाव रहा है. इस बार आरजेडी और बसपा की लड़ाई में बीजेपी को फायदा मिल गया. जगदानंद सिंह और सुधाकर सिंह, अजीत सिंह को जीत नहीं दिलवा सके.
- दूसरी तरफ पूर्व विधायक अंबिका यादव अपने भतीजे सतीश यादव को नहीं जिता पाए. दोनों परिवारवाद को लोगों ने नकार दिया. चुनाव से पहले अजीत सिंह आरजेडी में शामिल कराए गए थे. यहां यादवों ने लालू प्रसाद और तेजस्वी को भी नकारा है.
- यादवों का वोट आरजेडी और बसपा के बीच बंट गया. चमार जाति यहां अकेले 22 फीसदी है. दलितों के लगभग 29 फीसदी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बसपा के साथ गया. तेजस्वी यादव ने रामगढ़ में 40 किमी का रोड शो किया था. इस मायने में तेजस्वी की भी हार यहां हुई.
रामगढ़ का सामाजिक समीकरण
यहां चमार जाति अकेले 22 फीसदी है. दलितों का वोट बैंक लगभग 29 फीसदी है और ये वोट बैंक जीत-हार में मायने रखता है। राजपूत 8 फीसदी, ब्राह्मण 6 फीसदी हैं. सवर्ण 17.5 फीसदी हैं। यादव वोट बैंक 12 फीसदी और मुसलमान 8 फीसदी हैं. कोयरी-कुर्मी मिलाकर 8 फीसदी हैं. ओबसी 26 फीसदी हैं.
4. बात तरारी सीट की
तरारी उपचुनाव (Bihar Election Results) में माले ने यादव समाज से आने वाले उम्मीदवार के उतारा था. यादव वोट अपनी तरफ करने की चिंता न तो बीजेपी को रही और न ही जनसुराज को. इन दोनों ने सवर्णों पर खुद को फोकस किया. बीजेपी ने भूमिहार को टिकट दिया और जनसुराज ने राजपूत को. माले की हार का बड़ा कारण यह रहा कि यादव उम्मीदवार की वजह से वैश्यों का काफी वोट टूट कर बीजेपी की तरफ चला गया.
वैश्य जाति से आने वाले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने वैश्यों का वोट हासिल कराने में सफलता हासिल की. यहां जीत-हार का अंतर 10612 वोटों का रहा. यह बड़ा अंतर है. जनसुराज की किरण सिंह को 5622 वोट मिले. चारों सीटों में सबसे कम वोट जनसुराज को इसी सीट पर मिले.
तरारी का सामाजिक समीकरण
यादव 13.9 फीसदी, ईबीसी 12.3 फीसदी, मुसलमान और भूमिहार 10 फीसदी के आसपास हैं. राजपूत 8 फीसदी, पासवान 7 फीसदी हैं. सवर्ण वोट बैंक 24 फीसदी है. यह नक्सल प्रभावित इलाका रहा है. रणवीर सेना का संस्थापक माने जाने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या मामले में सुनील पांडेय का नाम भी आया था.
NDA को जिताने में जनसुराज का बड़ा हाथ
- चार सीटों पर हुए उपचुनाव में जनसुराज के प्रशांत किशोर का बड़ा हाथ एनडीए को जितवाने में रहा. दूसरी बात यह कि बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल की वजह से वैश्यों का बड़ा वोट एनडीए की तरफ ट्रांसफर हुआ. इंडिया ब्लॉक में प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ियां दिखीं. जो समीकरण साधना था उसके लिए पुराने पहलवानों पर ही दांव खेला गया.
- तरारी में माले के राजू यादव हार का रिकॉर्ड बनाते दिखे जबकि वहां बीजेपी के पास पहलवान था ही नहीं, वहां सुनील पांडेय और उनके पुत्र को बीजेपी शामिल कराकर बेटे को टिकट दिया गया.
- रामगढ़ में सुधाकर सिंह के भाई लड़ रहे थे प्रचार प्रसार में सुधाकर सिंह ने कहा कि 2020 में तीन सीट पर लाठी से पिटवाए थे, इस बार 300 सीट पर पिटवाएंगे. ऐसा बयान घातक रहा.
- बेलागंज में सुरेन्द्र यादव कह रहे थे कि हम तीसरा नेत्र खोलेंगे. उनका बेटा वहां आरजेडी से लड़ रहा था. वहां ओसामा की सभा में अल्पसंख्यक को थप्पड़ लगा. उसका असर हुआ. आरजेडी बेलागंज हार गई.
- एमवाई समीकरण का एम इस चुनाव में लालू यादव के साथ नहीं खड़ा दिखा. आगे तेजस्वी यादव को मंथन करना पड़ेगा.
आरजेडी की आगे की यात्रा कठिन होगी
राजनीतिक विश्लेषक सुनिल प्रियदर्शी कहते हैं कि ‘उपचुनाव में चारों सीटों पर एनडीए की जीत ने साबित कर दिया कि लोगों ने नीतीश कुमार और बीजेपी की सरकार के कामकाज पर अपनी मुहर लगाई है. आरजेडी के परिवारवाद को नकार दिया है. वही रामगढ़ में सुधाकर सिंह की इमेज बड़बोले नेता की हो गई हैं.